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स्त्री शिक्षा की प्रणेता, नारी सशक्तिकरण का अद्भुत व्यक्तित्व - सावित्रीबाई फुले

  स्त्री शिक्षा की प्रणेता, नारी सशक्तिकरण का अद्भुत व्यक्तित्व -  सावित्रीबाई फुले                                         डॉ. साधना गुप्ता                                              सावित्रीबाई फुले का जन्म सातारा जिले के खंडाला तहसील के नया गांव में 3.1.1831 में खंडोजी नेवसे  पाटिल के घर हुआ था। 1940 ईस्वी में मात्र  9 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह ज्योतिबा फुले से हो गया था। आपने पूना के मिशनरी स्कूल में  तीसरी कक्षा में प्रवेश लिया और बाद में अध्यापन का प्रशिक्षण भी यहीं से लिया। अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण आपने छात्रावास में ही  नीग्रो की दासता के विरुद्ध संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी टॉमस क्लार्कसन की पुस्तकें पढ़ ली थी। अनेक कष्ट और प्रताड़ना सहते हुए आपको भारत की प्रथम अध्यापिका होने का गौरव प्राप्त हुआ। स्त्री शिक्षा की वकालत करने के लिए प्रयास करने के कारण  इन पर  अनेक तरह से समाज द्वारा दबाव डाले गये जिसके कारण इन्हें अपना मकान छोड़कर परिवार से दूर अलग घर लेकर रहना पड़ा था। ऐसे में ज्योतिबा फुले इनकी शक्ति बने, उन्होंने हर कदम पर इनका साहस बढ़ाया। जब यह स्कूल अध्यापन

राजभाषा और राष्ट्रभाषा

              राजभाषा और राष्ट्रभाषा                                               डॉ. साधना गुप्ता                   राजभाषा        राजभाषा का अर्थ है संविधान द्वारा स्वीकृत वह भाषा जिसमें संघीय सरकार अपना कामकाज करती है अर्थात् जो संवैधानिक तौर पर घोषित सरकारी कामकाज की भाषा होती है।      भारतीय संविधान में  अनुच्छेद  346 से  351 तक राजभाषा सम्बंधित विशेष प्रावधान किए गए हैं  और  यह   स्पष्ट  किया  गया  है  कि  संघ  की राजभाषा   हिंदी   और   लिपि  देवनागरी  होगी।  यह स्पष्ट है कि हिंदी भारत में राजभाषा है  साथ ही भारत के बहुसंख्यक लोगों की भाषा होने के कारण राष्ट्रभाषा भी है किंतु राजभाषा जहां संवैधानिक रूप में मान्यता प्राप्त भाषाओं को ही माना जाता है वहां राष्ट्रभाषा का देश के संविधान से कोई लेना देना नहीं नहीं होता।     भारत के संविधान में हिंदी भाषा को राजभाषा का स्थान दिया गया है, किंतु साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि अंग्रेजी भाषा में भी केंद्र सरकार अपना कामकाज तब तक कर सकती है जब तक हिंदी पूरी तरह राजभाषा के रूप में स्वीकार्य नहीं हो जाती।   प्रारंभ में संविधान लागू होते

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता

  देवनागरी लिपि   की वैज्ञानिकता                                                                डॉ. साधना गुप्ता   देवनागरी लिपि रोमन एवं फारसी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है। इस लिपि में गुण अधिक   हैं   और  दोष  न्यूनतम्   हैं।   इसकी वैज्ञानिकता के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं -   वर्ण विभाजन में वैज्ञानिकता -   हिंदी की देवनागरी लिपि में कुल 52 वर्ण हैं। हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन।   वर्णमाला -   स्वर - 11 अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ,  अनुस्वार - 1                 अं विसर्ग - 1                 अ:  व्यंजन -    कंठ -         क, ख, ग, घ, ङ ।।  -5 तालव्य -      च, छ, ज, झ, ञ,     -5 मूर्धन्य -        ट, ठ, ड, ढ, ण,       -5 दन्त्य -         त, थ, द, ध, न        -5 ओष्ठ्य -       प, फ, ब, भ, म      -5 अन्तः स्थ -     य, र, ल, व           -4  ऊष्म -          श, ष, स, ह           -4  संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र        -4    द्विगुण व्यंजन - ड़, ढ़                  -2 स्वर - जिन  ध्वनियों के  उच्चारण में किसी

देवनागरी लिपि का मानकीकरण

  देवनागरी लिपि का मानकीकरण                                              डॉ. साधना गुप्ता अर्थ -  किसी भी लिपि के विभिन्न स्तरों पर पाई जाने वाली  विषम रुपता को दूर कर उसमें एकरूपता लाना ही मानकीकरण कहलाता है।  लिपि का मानकीकरण करने के लिए कुछ तथ्य महत्वपूर्ण होते हैं -   1. एक ध्वनि को अंकित करने के लिए विविध लिपि चिह्नों  में से एक को मान्यता दी जाती है। यथा  - देवनागरी लिपि में  अ,  झ,  ल, ध, भ, ण मान्य है। 2 के उच्चारण में भी एकरुपता होनी आवश्यक है। क्षेत्रीय उच्चारण के कारण लोग अलग-अलग ढंग से एक ही ध्वनि का उच्चारण करते हैं। जैसे -   पैसा , पइसा, पाइसा।  इनमें से पहला उच्चारण  पैसा     ही मानक उच्चारण है। 3. वर्तनी की एकरूपता भी भाषा की शुद्धता के लिए परम आवश्यक है । देवनागरी लिपि में  ई , यी , तथा ये , ए , के प्रयोग कहाँ करने चाहिए और कहाँ नहीं, इस संबंध में भारत सरकार ने के शिक्षा मंत्रालय की' वर्तनी समिति' ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लेकर मानकीकरण  की दिशा में उल्लेखनीय उल्लेखनीय कार्य किया है, जिसके अनुसार -  1.संज्ञा शब्दों के अंत में 'ई' का प्रयोग होना चाहिए य

नागरी लिपि का विकास

           नागरी लिपि का विकास                                          डॉ. साधना गुप्ता   लिपि का अर्थ - लिखित ध्वनि संकेतों को लिपि  कहते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है जिसमें उस भाषा  को  लिखा जाता है ।   हिंदी जिस लिपि में लिखी जाती है उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहा जाता है।  अंग्रेजी रोमन लिपि में,  उर्दू फारसी लिपि में,  पंजाबी गुरुमुखी लिपि में लिखी जाती है।  प्राचीन लिपियाँ -  भारत की दो प्राचीन लिपि  ब्राह्मी लिपि,   खरोष्ठी लिपि । इनमें से ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी लिपि का विकास हुआ। देवनागरी लिपि का प्रयोग       संस्कृत,         प्राकृत,       अपभ्रंश,           हिंदी,        मराठी,            नेपाली      भाषाओं को लिखने में होता है। विकास-  देवनागरी लिपि का समुचित विकास आठवीं शताब्दी में हुआ। यह गुजरात के राष्ट्रकूट नरेशों  की लिपि थी।      ब्राह्मी लिपि के कई क्षेत्रीय रूपांतर थे। इनमें से एक रूपांतरण उत्तरी शाखा के रूप में था, जिसे नागरी कहते हैं। इसी से देवनागरी लिपि का विकास हुआ।     कुछ लोगों का मत है कि यह गुजरात के नागर ब्राह्मणों  की लिपि थी। इसके अक्षर

साहित्यिक हिंदी के रूप में खड़ी बोली हिंदी का उदय तथा विकास

  साहित्यिक हिंदी के रूप में खड़ी बोली हिंदी का उदय तथा विकास                                             डॉ. साधना गुप्ता     खड़ी बोली गद्य की सर्वप्रथम उल्लेख रचना अकबर के दरबारी कवि गंग की  ' चंद छंद बरनन की महिमा'   है इसका रचनाकार 1570 ई. है। इसके अतिरिक्त रामप्रसाद निरंजनी की ' भाषा योग वशिष्ठ' नामक रचना खड़ी बोली गद्य में लिखी गयी है।    खड़ी बोली गद्य के विकास में जिन चार लेखको का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उनके नाम एवं कृतियां हैं - मुंशी सदासुख लाल  -  सुख सागर  इंशा अल्ला खां        - रानी केतकी की कहानी  लल्लूलाल              - प्रेम सागर  सदल मिश्र             - नासिकेतोपाख्यान     रानी केतकी की कहानी आधुनिक काल में लिखी गई हिंदी की पहली मौलिक रचना है जिसकी भाषा मुहावरेदार, विनोदपूर्ण औरआनुप्रासिक है। लल्लू लाल की भाषा में पंडिताऊपन और सदल मिश्र की भाषा में पूर्वीपन है किंतु सदा सुखलाल की भाषा अधिक महत्व की है। फोर्ट विलियम कॉलेज - सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता की स्थापना हुई जिसमें हिंदी और उर्दू के अध्यापन के रूप में जान गिलक्राइस्ट की नियुक्त

हिंदी एवं अपभ्रंश भाषा का अंतर

  हिंदी एवं अपभ्रंश भाषा का अंतर                                         डॉ. साधना गुप्ता      कोई  भी   भाषा  संचित  जलाशय  नहीं  वरन् सहज प्रवाहित झरना होती है जो स्वतंत्रता के संग लगातार आगे बढ़ता रहता है और अपने अवदान को लुटाता  रहता है। हमें स्मरण है वैदिक संस्कृत से संस्कृत, - पालि ,- प्राकृत,- अपभ्रंश का सफ़र तय करते हुए   हिंदी भाषा का उद्भव हुआ है। हिंदी का  विकास  अपभ्रंश  के  क्षेत्रीय  रूप   शौरसेनी अपभ्रंश से  हुआ है  परंतु  शौरसेनी अपभ्रंश और हिंदी में बहुत से  अंतर है, जिन्हें हम यहां देखने का प्रयास करते हैं,-  1.  अपभ्रंश में केवल 8 स्वर थे - अ, आ,इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ । यह आठों ही मूल स्वर थे, लेकिन हिंदी में इनकी संख्या बढ़कर ग्यारह हो गयी,- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ,  ऋ,  ए, ऐ, ओ, औ   इनमें मूल स्वर केवल चार (अ, इ, उ,  ऋ) हैं। 2  च,  ज , झ ,  छ,   अपभ्रंश में स्पर्श व्यंजन थे परन्तु हिंदी में आकर यह स्पर्श-संघर्षी हो गए। 3. न, र, ल, स ध्वनियां अपभ्रंश में दन्त्य ध्वनियां थी।हिंदी में ये वत्सर्य ध्वनियां  हो गयी। 4. अपभ्रंश में ड़, ढ़  ध्वनियां नहीं थी। हिंदी में इनका प्रयोग होने लगा।