स्त्री शिक्षा की प्रणेता, नारी सशक्तिकरण का अद्भुत व्यक्तित्व - सावित्रीबाई फुले

 स्त्री शिक्षा की प्रणेता, नारी सशक्तिकरण का अद्भुत व्यक्तित्व -  सावित्रीबाई फुले

                                        डॉ. साधना गुप्ता  

                                     

   सावित्रीबाई फुले का जन्म सातारा जिले के खंडाला तहसील के नया गांव में 3.1.1831 में खंडोजी नेवसे  पाटिल के घर हुआ था। 1940 ईस्वी में मात्र  9 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह ज्योतिबा फुले से हो गया था। आपने पूना के मिशनरी स्कूल में  तीसरी कक्षा में प्रवेश लिया और बाद में अध्यापन का प्रशिक्षण भी यहीं से लिया। अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण आपने छात्रावास में ही  नीग्रो की दासता के विरुद्ध संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी टॉमस क्लार्कसन की पुस्तकें पढ़ ली थी।

अनेक कष्ट और प्रताड़ना सहते हुए आपको भारत की प्रथम अध्यापिका होने का गौरव प्राप्त हुआ। स्त्री शिक्षा की वकालत करने के लिए प्रयास करने के कारण  इन पर  अनेक तरह से समाज द्वारा दबाव डाले गये जिसके कारण इन्हें अपना मकान छोड़कर परिवार से दूर अलग घर लेकर रहना पड़ा था। ऐसे में ज्योतिबा फुले इनकी शक्ति बने, उन्होंने हर कदम पर इनका साहस बढ़ाया। जब यह स्कूल अध्यापन के लिए जाती थी तो एक साड़ी साथ ले जाती थी, कारण समाज के लोग विरोध स्वरूप इन पर सड़ी गली वस्तुएं फेंककर इनके कपड़े गंदे कर देते थे तब सावित्रीबाई स्कूल पहुँच कर साड़ी बदल कर छात्राओं को अध्यापन करवाती थीं और शाम को घर आकर कपड़े साफ करती थी। दुःखी ह्रदया सावित्रीबाई को तब ज्योतिबा धैर्य रखने को कहते थे, उनका सम्बल बनते थे। इस प्रकार सावित्रीबाई ने नारी शिक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। यहाँ रेखांकित करने की एक बात यह भी है कि ये नारी शिक्षा हेतु अपनी ये सेवाएँ निःशुल्क देती थी और अपनी आजीविका हेतु शेष समय में मोटे गद्दे बनाकर बेचने का कार्य करती थी। ज्योतिबा सिलाई की दुकान चलाते थे। सावित्रीबाई के महान योगदान के विषय में ज्योतिबा की स्वीकारोक्ति है,- "अपने जीवन में मैं जो कुछ भी कर पाया हूँ, वह मेरी पत्नी सावित्रीबाई के सहयोग से ही हो सका है। वे कांटों भरे रास्ते में भी मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलती रही।"

   19 वीं सदी में भारतीय महिलाओं की सामाजिक जीवन में भागीदारी शून्य थी। ऐसे में सार्वजनिक जीवन को अपनाने वाली प्रथम भारतीय महिला का गौरव इन्हें ही प्राप्त है।

  स्त्री शिक्षा के महायज्ञ का शुभारंभ - ज्योतिबा फुले और इनके मित्र सदाशिवराव गोवन्दे ने स्त्री शिक्षा के लिए सर्वप्रथम प्रयास अपने ही घर से प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। सावित्रीबाई को शिक्षित कर प्रथम पाठशाला की स्थापना बुधवार पेठ के मकान में 01 जनवरी 1848 को पूना में की तथा 15 जनवरी जो कन्या पाठशाला की स्थापना की जिसमें छः छात्राएं थी -

अन्नपूर्णा जोशी (उम्र 5 वर्ष)

सुमती मोकाशी (उम्र 4 वर्ष)

दुर्गा देशमुख (उम्र 6 वर्ष)     

माधवी थत्ते (उम्र 6 वर्ष)

सोर पवांर (उम्र 4 वर्ष)

जानी करडिले (उम्र 5 वर्ष)

 क्रम  जारी रहा, ज्योतिबा ने अन्नासाहब चिपलूणकर के बाड़े में 3.7.1851 में एक ओर कन्या पाठशाला  की स्थापना की। स्त्रियों के उत्थान के लिए अनेक कष्ट उठाते हुए ज्योतिबा और सावित्रीबाई शिक्षा के कार्य में जुटे रहे। 06 छात्राओं से प्रारम्भ हुई यह संख्या शीघ्र ही 48 हो गयी। एक पाठशाला प्रबन्ध समिति बनाई गई जिसने 7 सितम्बर 1851 ई. में  एक और बालिका विद्यालय की स्थापना क्र क्रम  की। 15 मार्च 1852 में एक और कन्या पाठशाला जी स्थापना बेताल पेठ में की। कुल 18 कन्या विद्यालय खोले गए - 

भीडेवाडा, पुणे ( 1.1.1848 )

आल्हाट का घर, पुणे (1.7.1848)

हड़पसर, पुणे ( 1.8.1848 ) 

ओतूर, पुणे (5.12.1848 )

सासरवड़, पुणे (20.12 .1848)

हरिजनवाडा, पुणे ( 15.5.1849 )

नयागांव, तालुका खंडाला, जिला सतारा (15.7.1849)

शिवरलतालुम, खंडाला, जिला- सतारा (18 7.1849)

तलेगांव, ढभढेरे, पुणे (8.8.1849)

शिरवल, पुणे (8.8.1849)

अंजीरवाड़ी, माजगांव (3.3.1850)

करंजे, जिला सतारा (6.3.1850)

भिगार,(19.9.1850)

मुंढवे, पुणे (1.12.1850)

आप्पा साहब चिपलूणकर हवेली पुणे (3.7.1851)

नाना पेठ, पुणे (1.12.1851)

रास्तापेठ, पुणे (17. 12.1851)

वेतालपेठ, पुणे (15.3.1852)

नोट- यह आंकड़े विजयलक्ष्मी जाटव की शोधप्रबंध इंटरनेट द्वारा, डॉ. कुसुम मेघवाल - भारतीय नारी के उद्धारक - बाबा साहेब डॉ. वी.आर. अम्बेडकर पृ.73 ।

तरुणियों के लिए भी पृथक से व्यवस्था की, अलग विद्यालय की स्थापना की। ऐसे विद्यालय में निर्धन छात्राओं के लिए पुस्तकालय की स्थापना भी की।

उपरोक्त वर्णित 18 विद्यालय इनके द्वारा खोले गए जिनमें सगुणा बाई इत्यादि महिलाएं कार्य में इनका सहयोग करती थी जिनमें  एक मुस्लिम महिला फातिमा शेख भी थी जिन्होंने सावित्री जी का अनुसरण करते हुए सुधारवादी एवं क्रांतिकारी आंदोलनों में बहुत सहयोग दिया। ये ज्योतिबा के मित्र उसमान शेख की बहिन थी जिन्हें पिता द्वारा घर से निकाल देने के बाद उन्होंने अपने घर पर शरण दी थी। यह तत्कालीन हिन्दू-मुस्लिम प्रेम का अनुपम उदाहरण था। 19 वीं सदी की प्रथम भारतीय मुस्लिम अध्यापिका होने का गौरव भी इन्हीं फातिमा शेख को प्राप्त है।

 सावित्रीजी का उद्देश्य  स्त्रियों को शिक्षित करना ही नहीं था। वे महिलाओं का चहुमुंखी विकास करना चाहती थी। ज्योतिबा द्वारा स्थापित विधवा आश्रम व अनाथाश्रम की व्यवस्था का भार भी इन्हीं पर था। ज्योतिबा के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके द्वारा संचालित सत्यशोधक समाज की बागडोर सावित्रीबाई ने ही 1891 ई.से 1897 ई. तक सम्भाली। अनेक सभा  सम्मेलनों में जाकर कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया तथा सम्बन्धित संस्थाओं का कुशल संचालन भी किया। अध्यापिका, समाजसेविका के साथ आप विदुषी लेखिका, प्रतिभा सम्पन्न कवयित्री भी थी। एक प्रसिद्ध कविता संग्रह 'काव्य फुले' 1854 में प्रकाशित हुआ।

समाज के विरुद्ध नाव खेने के लिए इन्हें पीहर पक्ष द्वारा भी निषेध किया गया था परन्तु इनका जो विश्वास था वह ज्योतिबा से कहे गए इनके कथन से झलकता है ,- हम सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं, हमारी विजय निश्चित होगी।

1897 में महाराष्ट्र में प्लेग में एक बालक की दयनीय अवस्था लोग केवल देख रहे थे तब आपने उसे गले लगाया। कंधे पर उठाकर अपने पुत्र यशवंतराव के अस्पताल में ले गयी जिससे इन्हें भी प्लेग हो गया और 1897 में आपका निधन हो गया।

 साररूप में केवल इतना कि इन्होंने जिस नारी मुक्ति आंदोलन का सूत्रपात किया, उसका परिणाम है आज अनेक महिलाएं उच्च पदासीन है। यह कहना अतिश्योक्ति कदापि नहीं होगा कि भारत की हर शिक्षित नारी उनकी ऋणी है अतः सभी को उनके योगदान से परिचित करवाना हमारा धर्म है। वे स्त्री शिक्षा की प्रणेता ही नहीं देश का गौरव भी हैं।

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