हिन्दी पत्रकारिता का आधार उदन्त मार्तण्ड

 

हिन्दी पत्रकारिता का आधार: उदन्त मार्तण्ड

                                          डॉ. साधना गुप्ता

                                                                             हिंदी पत्रकारिता के लिए 30 मई को बहुत अहम दिन माना जाता है क्योंकि आज ही के दिन हिंदी भाषा में पहला समाचार पत्र "उदन्त मार्तण्ड" का प्रकाशन हुआ था। जिसका शाब्दिक अर्थ है,- 'बाल सूर्य'। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने 30 मई, 1826 को इसे   कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक  वो स्वयं थे।    इसी वजह से पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता के जगत में विशेष स्थान है।

      

1826 से पहले अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन हो रहा था, लेकिन हिंदी में एक भी समाचार पत्र नहीं निकलता था। अतः जुगल किशोर ने 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल मूल रूप से कानपुर के रहने वाले थे जो एक वकील होने के बावजूद पत्रकारिता को ज्यादा अहमियत देना चाहते थे।    लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश ने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया हुआ था जिस वजह से भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। 


ऐसे समय मे  उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन एक साहसिक प्रयोग था। ।यह पत्र पुस्तकाकार रूप में हर मंगलवार को निकलता था। सरकारी क्षेत्रों की विभिन्न गतिविधियाँ के संग उस समय की वैज्ञानिक खोजों तथा आधुनिक जानकारियों को भी इसमें प्रकाशित किया जाता था। इस पत्र में ब्रज और खड़ीबोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे  संचालक "मध्यदेशीय भाषा"  कहते थे।  बांग्ला साप्ताहिक 'समाचार चन्द्रिका ने इसके उद्देश्य पर टिप्पणी करते हुए लिखा था,- अ'ज्ञान तथा रूढ़ियों के अँधेरों में जकड़े हुए हिन्दुस्तानी लोगों की प्रतिभाओं पर प्रकाश डालने और 'उदंत मार्तण्ड' द्वारा ज्ञान के प्रकाशनार्थ' इस पत्र का श्री गणेश हुआ।'

  

इस पत्र की प्रारंभिक विज्ञप्ति से इसकी भाषा एवं उद्देश्य दोनों को देखा जा सकता है,-

 

यह "उदन्त मार्तण्ड" अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी ओ बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उनका सुख उन बोलियों के जान्ने और पढ़ने वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं। इससे सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देख आप पढ़ ओ समझ लेयँ ओ पराई अपेक्षा न करें ओ अपने भाषे की उपज न छोड़े। इसलिए दयावान करुणा और गुणनि के निधान सब के कल्यान के विषय गवरनर जेनेरेल बहादुर की आयस से ऐसे साहस में चित्त लगाय के एक प्रकार से यह नया ठाट ठाटा...


लेकिन 'उदन्त मार्तण्ड' के शुरूआत में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी पत्रकारिता आगे चल कर इतना बड़ा आकर ले लेगी और इतनी महत्वपूर्ण हो जाएगी।

   

जुगल किशोरजी को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।  इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 कॉपियां छपी लेकिन हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। इसके अलावा हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था जो आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था। हालांकि इसके लिए जुगल किशोर ने सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। पैसों के अभाव के कारण 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन 4 दिसम्बर 1827 को बंद कर दिया गया। इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए।

   

लेकिन बाद में परिस्थितियां बदलीं और हिन्दी समाचार पत्रों ने समाज में अपना स्थान बना ही लिया क्योंकि समाज और राजनीति की दिशा और दशा को बदलने और सुधारने में हिन्दी पत्रकारिता ने काफी मदद की।उदन्त मार्तण्ड' से शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का ये सफर आज बरकरार है और हिंदी पत्रकारिता दिनों दिन आगे कदम बढ़ा रही है। इसलिए 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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