नागरी लिपि का विकास

         नागरी लिपि का विकास

          

                             डॉ. साधना गुप्ता


 

लिपि का अर्थ - लिखित ध्वनि संकेतों को लिपि  कहते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है जिसमें उस भाषा  को  लिखा जाता है ।


 हिंदी जिस लिपि में लिखी जाती है उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहा जाता है। 


अंग्रेजी रोमन लिपि में, 

उर्दू फारसी लिपि में, 

पंजाबी गुरुमुखी लिपि में लिखी जाती है। 


प्राचीन लिपियाँ -  भारत की दो प्राचीन लिपि 

ब्राह्मी लिपि,  

खरोष्ठी लिपि ।

इनमें से ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी लिपि का विकास हुआ।


देवनागरी लिपि का प्रयोग

      संस्कृत,

       प्राकृत,

     अपभ्रंश,  

       हिंदी, 

     मराठी,    

     नेपाली    

भाषाओं को लिखने में होता है।


विकास-  देवनागरी लिपि का समुचित विकास आठवीं शताब्दी में हुआ। यह गुजरात के राष्ट्रकूट नरेशों  की लिपि थी।

 

  ब्राह्मी लिपि के कई क्षेत्रीय रूपांतर थे। इनमें से एक रूपांतरण उत्तरी शाखा के रूप में था, जिसे नागरी कहते हैं। इसी से देवनागरी लिपि का विकास हुआ।


   कुछ लोगों का मत है कि यह गुजरात के नागर ब्राह्मणों  की लिपि थी। इसके अक्षर तांत्रिक चिह्न देव नागर के अनुरूप  चौकोर हैं। इसीलिए इसे देवनागरी कहने लगे । परन्तु यह मत पुष्ट नहीं है।


   ब्राह्मी लिपि की उत्तरी शाखा नागरी का प्रयोग जब देव भाषा संस्कृत के लिए होने लगा तो इस लिपि को देवनागरी लिपि कहा जाने लगा।

 देवनागरी लिपि: सुधार और संशोधन - 

   देवनागरी लिपि में सुधार और संशोधन के जो प्रयास  समय-समय  पर  किए गए  हैं  उन्हें  ही देवनागरी लिपि का विकास कहा जाता है  -


1. सर्वप्रथम मुंबई राज्य के महादेव गोविंद रानाडे ने लिपि सुधार समिति गठित की।


2. महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे में भी सुधार योजना बनाई गई। 


3. बीसवीं सदी के प्रारंभ (1904) में लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र 'केसरी' में लिपि सुधार की चर्चा की और 1926 में 'तिलक टाइप' की रचना की।


4 .वीर सावरकर, महात्मा गांधी, विनोबा भावे, काका कालेलकर और आचार्य नरेन्द्रदेव ने लिपि में सुधार एवं संशोधन के प्रयास किए।


5. काका कालेलकर ने 'अ' की बारखड़ी का सुझाव दिया, जिसमे स्वर ध्वनियों की संख्या कम थी । सभी मात्राएं अ पर लगाने का सुझाव था।


6. डॉ. श्यामसुंदर दास का सुझाव था कि पंचम वर्ण के स्थान पर केवल अनुस्वार का प्रयोग किया जाए, पञ्च - पंच, कम्बल- कंबल 


7. श्रीनिवास जी ने सुझाव दिया कि इस लिपि से महाप्राण ध्वनियाँ निकाल दी जाए और उसके स्थान पर अल्पप्राण ध्वनियों के नीचे कोई चिह्न लगाकर काम चलाया जाए ।


8. 5 अक्टूबर, 1941 ईस्वी को  हिंदी   साहित्य सम्मेलन प्रयाग में लिपि सुधार समिति की बैठक आयोजित की, जिसमें 

मात्राओं को उच्चारण क्रम में लगाने

छोटी इ की मात्रा को व्यंजन के आगे लगाने

प्र में प के हलन्त युक्त लिखने, श्र में श को हलन्त युक्त लिखने को कहा। 


9. सन् 1947 में उत्तरप्रदेश सरकार ने आचार्य नरेंद्रदेव की अध्यक्षता में लिपि सुधार समिति गठित की। इसके प्रमुख सुझाव -

 अ की बाराखडी भ्रामक है।

 मात्राएं यथा स्थान रहे, किंतु उन्हें थोड़ा दाहिनी ओर लिखा जाए।

 अनुस्वार एवं पंचम वर्ण के स्थान पर सर्वत्र बिंदु से काम चलाया जाए।

 द्विविधि लिखे जाने वाले अक्षरों में से निम्न को स्वीकार किया जाए

 अ, झ, ध, भ, ल

 संयुक्त वर्ण क्ष , त्र,  ज्ञ को वर्णमाला में स्थान दिया जाए।


 इन सुझावों को थोड़े हेर-फेर से स्वीकार कर लिया गया।


10. सन् 1953 में डॉक्टर राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई जिसमें सुझाव दिया गया कि 

हस्व इ की मात्रा व्यंजन से पूर्व लगाई जाए।

ख, ध, भ, छ को  इस तरह लिखा जाए।


11. लिपि सुधार के लिए समय-समय पर अनेक प्रयास होते रहे हैं और यह प्रक्रिया अभी तक चल रही है।


12. देवनागरी लिपि में अंग्रेजी की 

             ऑ 

ध्वनि को अंगीकार कर लिया है तथा 

फारसी की 

          क़, ख़, ग़, ज़, फ़, 

ध्वनियों को भी स्वीकार कर लिया गया।

 

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