राजभाषा और राष्ट्रभाषा

            राजभाषा और राष्ट्रभाषा

                                             डॉ. साधना गुप्ता

                  राजभाषा 

     राजभाषा का अर्थ है संविधान द्वारा स्वीकृत वह भाषा जिसमें संघीय सरकार अपना कामकाज करती है अर्थात् जो संवैधानिक तौर पर घोषित सरकारी कामकाज की भाषा होती है।

    भारतीय संविधान में  अनुच्छेद  346 से  351 तक राजभाषा सम्बंधित विशेष प्रावधान किए गए हैं  और  यह   स्पष्ट  किया  गया  है  कि  संघ  की राजभाषा   हिंदी   और   लिपि  देवनागरी  होगी।

 यह स्पष्ट है कि हिंदी भारत में राजभाषा है  साथ ही भारत के बहुसंख्यक लोगों की भाषा होने के कारण राष्ट्रभाषा भी है किंतु राजभाषा जहां संवैधानिक रूप में मान्यता प्राप्त भाषाओं को ही माना जाता है वहां राष्ट्रभाषा का देश के संविधान से कोई लेना देना नहीं नहीं होता।  

 भारत के संविधान में हिंदी भाषा को राजभाषा का स्थान दिया गया है, किंतु साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि अंग्रेजी भाषा में भी केंद्र सरकार अपना कामकाज तब तक कर सकती है जब तक हिंदी पूरी तरह राजभाषा के रूप में स्वीकार्य नहीं हो जाती।

 प्रारंभ में संविधान लागू होते समय

यह समय सीमा 15 वर्ष के लिए थी अर्थात् अंग्रेजी का प्रयोग सरकारी कामकाज के लिए सन् 1965 तक की हो  सकता था ।  किंतु  बाद में   संविधान संशोधन के द्वारा इस अवधि को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया । यही कारण है कि संविधान द्वारा हिंदी को राजभाषा घोषित किए जाने पर भी केंद्र सरकार का अधिकांश  सरकारी   कामकाज अंग्रेजी में ही हो रहा है और वह अभी तक अपना वर्चस्व बनाए हुए है।

 केंद्र सरकार की राजभाषा के अतिरिक्त अनेक राज्यों की राजभाषा के रूप में भी हिंदी का प्रयोग स्वीकृत है जिन राज्यों की राजभाषा हिंदी स्वीकृत है वह है -

          उत्तर प्रदेश

          हिमाचल प्रदेश

          दिल्ली

          हरियाणा

         मध्य प्रदेश

         राजस्थान

         बिहार

         झारखंड

         छत्तीसगढ़

         उत्तरांचल 

इन राज्यों के अलावा अन्य राज्यों ने अपनी प्रादेशिक भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया है। यथा-

 पंजाब की राजभाषा पंजाबी

 बंगाल की राजभाषा बंगला

 आंध्र प्रदेश की राजभाषा तेलुगू

 तथा कर्नाटक की राजभाषा कन्नड़ है।

   इन प्रांतों में भी सरकारी कामकाज प्रांतीय भाषा में होने के साथ-साथ अंग्रेजी में हो रहा है।

    अतः   यह   कहा  जा  सकता  है  कि  अंग्रेजी संविधान द्वारा भले ही किसी राज्य की राजभाषा स्वीकृत न की  गई  हो  किंतु  व्यवहारिक  रूप  में उसका प्रयोग एक बहुत बड़े सरकारी कर्मचारी वर्ग द्वारा सरकारी कामकाज के लिए किया जा रहा है

                 

                 राष्ट्रभाषा

    जिस  प्रकार   किसी  राष्ट्र  की   संप्रभुता   एवं स्वाभिमान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज एवं राज चिन्ह होता है। ठीक उसी प्रकार राष्ट्र की संस्कृति एवं भाषा भी उसके आत्म गौरव एवं अस्मिता का प्रतीक होती है।         

   भारत बहुभाषा भाषी  राष्ट्र है। विस्तृत  भू-भाग वाले इस राष्ट्र में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर ब्रह्मपुत्र तक  अनेक  भाषाएं एवं बोलियां बोली जाती है, किंतु सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक इकाई है। विभिन्नता में एकता भारत की दुर्बलता ना होकर इसकी शक्ति है। कश्मीरी, सिंधी, पंजाबी, हिंदी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, उड़िया, असमिया, बंगला, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ , मलयालम  जैसी  अनेक  समृद्ध  भाषाएं भारत में व्यवहार में ली जाती है।  प्रश्न  यह है  कि इनमें से किसे राष्ट्रभाषा माना जाए और क्यों?

   सर्वप्रथम हमें राष्ट्रभाषा के लिए अपेक्षित गुणों पर विचार कर लेना चाहिए, इसके बाद यह देखना चाहिए कि भारत में कौन सी भाषा में यह गुण सर्वाधिक मात्रा में है। उसी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिया जाना चाहिए।

    किसी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के बहुसंख्यक लोगों की भाषा को माना जाता है जब कोई भाषा अपने महत्त्व के कारण राष्ट्र के विस्तृत भू-भाग में जनता द्वारा अपना ली जाती है तो  वह  स्वतः ही राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त कर लेती  है।  ऐसी  भाषा  जिसमें 

 उच्च कोटि के साहित्य की रचना हुई हो,

 जिसका शब्द भंडार विस्तृत एवं समृद्ध हो,

 व्यापक क्षेत्र में व्यवहार में लायी जाती हो,

 व्याकरण सरल एवं नियम बद्ध हो ,

 जिसकी लिपि सुस्पष्ट एवं वैज्ञानिक हो,  

 जो  राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हो,

 जो  राष्ट्रीय एकता में सहायक हो।

   राष्ट्रभाषा कहलाती है। हिंदी ऐसी ही भाषा है अतः भारत की  राष्ट्रभाषा है।

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