हिंदी गद्य के प्रारंभिक लेखक चतुष्ट

 हिंदी गद्य के प्रारंभिक लेखक चतुष्ट

                                             डॉ. साधना गुप्ता

   वैसे तो रामप्रसाद निरंजनी ने 1741 ई. में 'भाषा योगवशिष्ठ' नाम का गद्य ग्रन्थ खड़ी बोली हिंदी में लिखा है जिसकी भाषा साफ सुथरी है।  रामप्रसाद निरंजनी पटियाला दरबार से थे। इनके गद्य से यह स्पष्ट होता है कि मुंशी सदासुख लाल एवं लल्लूलाल से साठ वर्ष पूर्व भी खड़ी बोली गद्य का परिमार्जित रूप था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार भाषा योगवासिष्ठ में प्रयुक्त गद्य सर्वाधिक परिमार्जित है और वे रामप्रसाद निरंजनी को ही प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मानते हैं परन्तु  लगभग ई.1800 के लेखक चतुष्ट के नाम से जाने वाले हिंदी गद्य के प्रथम चार लेखकों में लल्लूलाल, सदल मिश्र ,मुंशी सदासुख लाल और इंशा अल्ला खां का नाम सम्मिलित है।  इन चारों का योगदान अपना महत्व रखता है।एक विवरण निम्न है-

लल्लूलाल-  लल्लूलाल जी आगरा के गुजराती ब्राह्मण थे। फोर्ट विलियम कॉलेज के हिंदी- उर्दू अध्यापक जान गिलक्राइस्ट के आदेश से इन्होंने खड़ी बोली गद्य में  भागवत के दशम स्कंध की कथा वर्णित करते हुए जिस कृति का सृजन किया उसका नाम 'प्रेमसागर' है। लल्लूलाल  ने इस कृति में अरबी- फारसी के शब्दों का प्रयोग नहीं किया है।

   लल्लूलाल  ने बिहारी सतसई की टीका भी लिखी जिसका नाम है 'लाल चंद्रिका'।

    इन्होंने कलकत्ता में एक प्रेस खोला था जिसे फोर्ट विलियम कॉलेज की नौकरी से पेंशन लेने के बाद यह आगरा ले आए थे। इस प्रेस का नाम इन्होंने संस्कृत प्रेस रखा था।

 इन्होंने उर्दू में भी कुछ पुस्तकें लिखी हैं जिनमें सिहासन बत्तीसी, बेताल पच्चीसी, शकुंतला नाटक और माधोनल शामिल है ।  

सदल मिश्र-  सदल मिश्र भी फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता में ही कार्य करते थे। कॉलेज अधिकारियों द्वारा प्रेरित इन्होंने खड़ी बोली  गद्य में 'नासिकेतोपाख्यान' नामक पुस्तक की रचना की। भाषा की दृष्टि से इसमें ब्रजभाषा के साथ साथ कुछ पूर्वीपन का पुट भी लक्षित होता है। 

मुंशी सदासुखलाल 'नियाज' - ये दिल्ली के रहने वाले थे। इन्होंने हिंदी में श्रीमद्भागवत पुराण का अनुवाद 'सुखसागर' नाम से किया। मुंशी जी ने न तो किसी अधिकारी की प्रेरणा से यह कार्य किया था और ना ही किसी दिए हुए नमूने के आधार पर। स्वतन्त्र रूप से अपना लेखन करते हुए इन्होंने हिंदुओं की सामान्य बोलचाल की शिष्ट भाषा  में  लेखन कार्य किया।

इंशा अल्ला खां - इंशा अल्ला खां   उर्दू के प्रसिद्ध शायर थे जो दिल्ली के उजड़ने पर लखनऊ चले आए  थे।इन्होंने  'रानी केतकी की कहानी' जिसे उदयभान चरित भी कहा जाता है की रचना ई. 1800 में की थी। इस ग्रंथ की रचना में उनका उद्देश्य  ठेठ हिंदी में साहित्य रचना करना था जिससे हिंदी को छोड़ किसी और बोली का पुट ना हो।

हिंदी गद्य के इन  प्रारंभिक चारों लेखकों की भाषा भिन्न-भिन्न है।  इंशा अल्ला खां की भाषा सबसे अधिक चटकीली, मुहावरेदारऔर चलती हुई है। यह रंगीन और चुलबुली भाषा द्वारा अपना लेखन कौशल दिखाना चाहते थे। 


आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन चारों में मुंशी सदासुख लाल को विशेष महत्व दिया है। उनक्स मत था,- 'मुंशी सदासुखलाल को हिंदी गद्य का प्रवर्तन करने वालों में स्थान दिया जाना चाहिए'।


 नोट.- प्रतियोगी परीक्षाओं में इनसे सम्बंधित एक प्रश्न अवश्य होता है। 

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