आधुनिक भारत के इतिहास के चाणक्य - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

 आधुनिक भारत के इतिहास के चाणक्य - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

                                         डॉ. साधना गुप्ता

                     कविता


मन, वचन, कर्म संग, प्राण व पहचान एक,

इतिहास रचता है वही, राष्ट्र- सेवा ध्येय एक।।

पंख चाहें हों न हों, होंसलों में उड़ान हो,

बहती नदिया की धार सा, व्यक्तित्व का विस्तार हो


10 दिसंबर 1878, मद्रास-धोरापल्ली का जागा भाग्य था,

न्यायाधीश नलिन चक्रवर्ती के आंगन में गूंजा शिशु गान था।

ज्ञान की गोदावरी में स्नान राजगोपालाचारी का ध्येय था

छोड़ वट की छाव उसे, जाना बैंगलोर- मद्रास था।


प्रेसीडेंसी कॉलेज से  शिक्षा ,  विषय कानून भाया, 

योग्यता-प्रतिभा से कर श्रृंगार, संकल्प ने निखार पाया। 

नलिन सपूत सेलम का प्रसिद्ध वकील बन छाया।

म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन अध्यक्ष पद, अभय दान हाथ आया।


सजे थे नयनों में जो स्वप्न, उन्हें साहस से साकार किया,     

अस्तित्व खोजती अभिलाषा ने, जीवन मूल्यों को आधार दिया। 

सहकारी बैंक की स्थापना, समाजोद्धार का कार्य किया,    

रख मन में विश्वास,  हर बाधा को समाधान दिया।


विवेकानन्द का मिला साथ, जीवन का बदला जैसे प्रभात,,

मशाल बन जलना बदलाव के लिए, जाना जीवन का राज आज। 

गला ढाल तलवार बनाना, यही तो है सियासत का राज, 

खामोशी भी कभी बोलती, सबसे मुखर होती उसकी आवाज।  

उपजाऊ रज संग जल-ऊष्मा, फूट पड़े अंकुर महान,  

भारतीय राजनीति का शिखर पुरुष, राजाजी नाम बनी पहचान।  

समाज सुधारक, गांधीवादी,, वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ, 

स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, आधुनिक भारत का चाणक्य कहलाया।

सुलझाने से पूर्व बात को समझना उसने सिखलाया,

प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल बन दिखलाया,           

स्वतन्त्र भारत का द्वितीय गवर्नर-जनरल पद भी था पाया

बुद्धि चातुर्य , दृढ़ इच्छाशक्ति का साकार रुप था पाया। 


गांधी, लाल, पटेल सभी जिसकी करते शंसा न अघाते थे,

इस मिट्टी में स्वराज ऊगा है, राजाजी यही बताते थे।

स्वराज पे चली लेखनी, स्वदेशी का मान दिखाते थे, 

नशा मुक्ति, खादी स्वदेशी का राज बताते थे।


परम्परा है प्रवाह नदी सा, न रुकता , न थमता आया,

लेखन प्रतिभा के धनी आपने, गीता-उपनिषद् को समझाया।

रची गद्य रामायण भाषा तमिल , नाम चक्रवर्ती तिरुमगन पाया, 

सन् 1958, साहित्य अकादमी सम्मान जिसके सर आया।


उद्योगमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री बन भू का मान बढ़ाया

देश ने देकर  भारत रत्न प्रथम, राजाजी पर अपनापन बरसाया। 

1954 का शुभ दिन, प्रथम भारत-रत्न  राजगोपालाचारी ने पाया,

कर्म का स्वाभिमान, रक्त का अभिमान सभी को सिखलाया।



जीवन परिचय

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को तमिलनाडु (मद्रास) के सेलम ज़िले के होसूर के पास 'धोरापल्ली' नामक गांव में हुआ था। एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में जन्मे चक्रवर्ती जी के पिता का नाम श्री नलिन चक्रवर्ती था, जो सेलम के न्यायालय में न्यायधीश के पद पर कार्यरत थे। आपने प्रारम्भिक शिक्षा गांव से तथा बैंगलोर के सैंट्रल कॉलेज से हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. और वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। आप सेलम में ही वकालत करने लगे। अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उनकी गणना वहां के प्रमुख वकीलों में की जाने लगी। जिन दिनों वे वकालत कर रहे थे, उन्हीं दिनों वे स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए और  समाज सुधार के कार्यों में भी सक्रिय रूप से रुचि लेने लगे। जिससे जनता द्वारा उन्हें सेलम की म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक नागरिक समस्याओं का समाधान करते हुए तत्कालीन समाज में व्याप्त ऐसी सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया जो उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी। सेलम में पहले सहकारी बैंक की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही है। आपकी जीवन संगिनी का नाम अलामेलु मंगम्मा था।

 

   वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर-जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल थे। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष अपने अद्भुत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण 'राजाजी' के नाम से प्रसिद्ध महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, गांधीवादी,,  वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक  चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का 'चाणक्य' माना जाता है। राजगोपालाचारी जी की बुद्धि चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे अनेक उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता भी उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे।


   राजाजी को 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। वह विद्वान और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी थे। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। वह तमिल और अंग्रेज़ी के बहुत अच्छे लेखक थे। 'गीता' और 'उपनिषदों' पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा रचित चक्रवर्ती तिरुमगन के लिये उन्हें सन् १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। यह गद्य में रामायण कथा है। उनकी कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। 'स्वराज्य' नामक पत्र में उनके लेख  प्रकाशित होते रहते थे। इसके अतिरिक्त नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार प्रसार में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है।


 भारतीय गवर्नर जनरल- 21जून, 1948 - 26 जनवरी, 1950, मुख्यमंत्री, मद्रास-10 अप्रेल, 1952 - 13 अप्रेल, 1954, गृहमंत्री- 26दिसम्बर, 1950 - 25 अक्तूबर, 1951, राज्यपाल, पश्चिम बंगाल- 15अगस्त, 1947 - 21 जून, 1948 पद पर कार्य करने वाले राजाजी ने 28 दिसम्बर 1972 को अंतिम सांस ली। 

                                    

Comments

  1. अत्यंत ज्ञानवर्धक एवम प्रभावशाली प्रस्तुति

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

हिन्दी पत्रकारिता का आधार उदन्त मार्तण्ड

देवनागरी लिपि का मानकीकरण

महाराजा अग्रसेन का उपकारहीन उपक्रम: एक निष्क और एक ईंट