ऐतिहासिक क्रम में हिंदी भाषा का उद्भव

 ऐतिहासिक क्रम में हिंदी भाषा का                         उद्भव 

     

                                                                                                             डॉ. साधना गुप्ता


   भारत में प्रमुख रूप से आर्य परिवार एवं द्रविड़ परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं। उत्तर भारत की भाषाएं  आर्य परिवार की तथा दक्षिण भारत की भाषाएं द्रविड़ परिवार की  कहलाती हैं । 

    

   उत्तर भारत की आर्य भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन है, जिसका प्राचीनतम रूप ऋग्वेद  में मिलता है। इसी की उत्तराधिकारिणी हिंदी  है।

 

भारतीय आर्यभाषाओं का काल विभाजन - 

 

1 . प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल ( 1500 ई. पू. से 500 ईसवी पूर्व तक)

2 . मध्य भारतीय आर्यभाषा काल ( 500  ई. पू.   से 1000 ई.  तक)

3 . आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल (1000 ई.  से अद्यतन)


प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल - इसमें वैदिक संस्कृत एवं लौकिक संस्कृत दो भाषाएं थी। चारों वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ ,उपनिषद् इसी काल की रचनाएं हैं। इनमें भाषा का एक रूप नहीं मिलता। ऋग्वेद   संस्कृत का प्राचीनतम ग्रंथ है।  लौकिक संस्कृत में रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ लिखे गए। 


इस काल की भाषा योगात्मक थी। 

शब्दों में धातु रूप सुरक्षित थे। 

भाषा में संगीतात्मकता  थी। 

पदों का स्थान निश्चित नहीं था। 

शब्द भंडार में तत्सम शब्दों की प्रचुरता थी।

 

मध्य भारतीय आर्यभाषा काल -  मध्य भारतीय आर्य भाषा काल में तीन भाषाएं विकसित हुई-

पालि भाषा (500 ई. पू.  से 1ई. तक)

प्राकृत भाषा (1ई. से 500 ई. तक)

अपभ्रंश भाषा (500 ई. से 1000 ई.तंक)


पालि - पालि को मागधी भाषा भी कहा जाता है। यह बौद्ध धर्म की भाषा है। बौद्ध साहित्य पालि भाषा में ही लिखा गया है। त्रिपिटक पालि में लिखे गए हैं। त्रिपिटकों के नाम हैं,- 

सुत्त पिटक,

विनय पिटक,

अभिधम्म पिटक । 


प्राकृत भाषा - बोल चाल की भाषा होने के कारण प्राकृत भाषा पंडितों में प्रचलित नहीं थी। संस्कृत नाटकों के अधम पात्र इस बोली का प्रयोग करते थे। जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया है। प्राकृत भाषा के पांच प्रमुख भेद माने गए हैं - 


शौरसेनी  प्राकृत  - जो मथुरा या शूरसेन जनपद में  बोली जाती है। इसे मध्य देश की बोली भी कहा गया है।


पैशाची प्राकृत - यह उत्तर पश्चिम में कश्मीर के आसपास की भाषा थी।


महाराष्ट्री प्राकृत - इसका मूल स्थान महाराष्ट्र था।

 

अर्द्धमागधी प्राकृत -  यह   मागधी   और शौरसैनी के बीच से क्षेत्र की भाषा थी।

 

मागधी प्राकृत -  यह   मगध  के  आसपास प्रचलित भाषा थी।

 

अपभ्रंश भाषा - अपभ्रंश भाषा  का   प्रयोग 500 ईस्वी से 1000 ईसवी तक हुआ। इस भाषा को आवहठ, अवहट्ठ,  अवहत्थ, देश भाषा, देशी भाषा आदि अनेक नामों से पुकारा गया।


    अपभ्रंश   का शाब्दिक अर्थ होता है - बिगड़ा हुआ या गिरा हुआ। जब भाषा का रूप सुसंस्कृत न रहकर बोलचाल का सामान्य रूप हो जाता है तो पंडितों की दृष्टि में वह भाषा बिगड़ी हुई मान ली जाती है और तब वे उसे अपभ्रंश की संज्ञा देते हैं।


   इसका  प्रारंभ कब से प्रारंभ हुआ?  इस संबंध में भिन्न-भिन्न मत हैं - 


   डॉ. उदय नारायण  तिवारी  ने  अपनी    पुस्तक 'हिंदी भाषा का उद्गम और विकास' में अपभ्रंश का जन्म काल 700 ई. स्वीकार किया है।

 

   डॉ. नामवर सिंह  ने  भी  अपने  ग्रंथ 'हिंदी के विकास में  अपभ्रंश   का  योगदान' में  अपभ्रंश   का  जन्म काल 700 ई. स्वीकार किया है।

 

  डॉ. भोलानाथ तिवारी   के   मत   के   अनुसार अपभ्रंश का जन्म 500 ईसवी के आसपास हुआ।

   

साहित्य में प्रयोग - साहित्य में प्रयोग की दृष्टि से  भ्रंपभ्रंश भाषा का प्रयोग कालिदास के नाटक 'विक्रमोर्वशीय' में निम्न वर्ग के पात्रों द्वारा किया गया है। 

छठी शताब्दी के अलंकारवादी  आचार्य  'भामह' ने भी अपभ्रंश का  उल्लेख संस्कृत एवं प्राकृत के साथ करते हुए इसे काव्योपयोगी भाषा बताया है ।

   

   इसका साहित्य में प्रयोग 1200 ई. तक हुआ। यद्यपि इसका काल 500 ईसवी से 1000 ईसवी तक ही माना जाता है। 1000 ईसवी के आसपास हिंदी का प्रयोग साहित्य  में प्रारंभ  हो  चुका  था, किंतु कुछ काल तक बाद में भी अपभ्रंश का प्रयोग साहित्य में दिखाई देता है।

 

आधुनिक  भारतीय  आर्य  भाषा -  आधुनिक  भारतीय आर्य  भाषाओं  का  विकास अपभ्रंश   भाषा  से  हुआ  है।  हिंदी  की   जननी अपभ्रंश के उत्तर भारत में  सात क्षेत्रीय रूपांतरण प्रचलित  थे,  जिनसे   कालांतर   में    आधुनिक भारतीय आर्य भाषा का  विकास हुआ -


शौरसेनी  अपभ्रंश   -        पश्चिमी हिंदी,                                   राजस्थानीगुजराती ।

 पैशाची अपभ्रंश     -    पंजाबी, लहंदा ।

  ब्राचड़ अपभ्रंश     -     सिंधी ।

  खस  अपभ्रंश       -     पहाड़ी ।

  महाराष्ट्री अपभ्रंश  -    मराठी ।

 अर्द्धमागधी  अपभ्रंश  - पूर्वी हिंदी

 मागधी अपभ्रंश  -  बिहारी ,उड़िया, बंगला,                                      असमिया

  

हिंदी एवं अन्य भारतीय आर्य भाषाओं का विकास अपभ्रंश के क्षेत्रीय भेदों से हुआ है, जिनके आधार पर भाषाओं के क्रमिक विकास को, - 

 संस्कृत 

 पालि

 प्राकृत

 अपभ्रंश

 हिंदी एवं

  अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में देखा जाता है।

हिंदी भाषा की उत्पत्ति मूल रूप से शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है।

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