सकारात्मक सोच से पाएं - प्रसन्नता के मधु कण

सकारात्मक सोच से पाएं - प्रसन्नता के मधु कण


                          डॉ. साधना गुप्ता


संसार का मूल रूप - संसार की प्रत्येक वस्तु गुण-दोष मय होती। है ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसमें किसी प्रकार का दोष ना हो और ना ही कोई ऐसी चीज है जिसमें कोई गुण ना हो। वास्तव में सभी वस्तुएं परिस्थितियों और प्राणियों में गुण दोष दोनों ही विद्यमान होते हैं। मनुष्य के भीतर स्वयं देवी और आसुरी दोनों प्रकार की शक्तियां होती हैं, परिस्थितियों के अनुसार उसमें कभी कोई प्रवृत्ति उभरती है और कोई दबती है। जिस समय देवी प्रवृत्ति उभार पर होती है उस समय मनुष्य हमे भला प्रतीत होता है और जिस समय उसकी आसुरी प्रवृत्तियां उभार पर आती है उस समय  वह हमें बुरा प्रतीत होता है। 


प्रकृति से सीखें - हर वस्तु में बुरे और भले दोनों ही तत्व होते हैं। उन्हें हम अपनी दृष्टि के अनुसार देखते हैं और वैसा ही अनुभव करते हैं। हंस के सामने पानी और दूध मिलाकर रखने पर वह दूध को ग्रहण करता है, पानी छोड़ देता है। इसी प्रकार फूलों में शहद होती है पर उसकी मात्रा इतनी कम होती है कि जब हम उन्हें खाते है तो हमें मिठास प्रतीत ही नहीं होती ,परन्तु  मधुमक्खी उसमें से मिठास ग्रहण करती है, शेष पदार्थ जो पुष्प में होता है उसे छोड़ देती है और पुष्प को कुछ क्षति भी नहीं होती। एक ही वस्तु का उपयोग अलग-अलग जीव अपने तरीके से करते हुए    लाभ प्राप्त करते हैं। स्वाति नक्षत्र के जल की बूंद को ही लें ,- सर्प के मुँह में जाकर वह हलाहल बनती है, सीपी के मुँह में पड़कर बहुमूल्य मोती, कदली में जाकर कपूर, बाँस के छेदों में जाने से वंशलोचन उभरता है और पपीहे के मुँह में जाकर उसकी प्यास मिटती है। वैद्य द्वारा पारद से निर्मित बहुमूल्य रसायन से अनेक व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ करते  हैं वहीं दूसरी ओर उसी पारद को खाकर एक अन्य व्यक्ति आत्मघात भी कर लेता है। 


दृष्टिकोण बदलें -   यदि हम सड़े गले कूड़े करकट का खाद के रूप में प्रयोग कर धन कमा सकते हैं, तो फिर कोई कारण नहीं कि समाज के लिए घटिया आदमी का बुद्धिमत्ता पूर्ण प्रयोग किया जाए, व्यवहार किया जाए तो उसको सज्जन बनाया जा सकता है। जब सर्प, रीछ, बंदर जैसे अनुपयोगी जानवरों को प्रशिक्षित कर उनका खेल दिखा कर धन कमाया जा सकता है तो कोई कारण नहीं कि बुरे, छोटे और मूर्ख समझे जाने वाले लोगों को अपने लिए हानिकारक होने की अपेक्षा उपयोगी, लाभदायक बना सकें। 

    आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारा स्वयं का दृष्टिकोण और स्वभाव सही हो। यदि वह गलत है यदि हम अपनी स्वयं की दुर्बलता के प्रभाव में प्रवाहित होते चले जाते हैं और छोटे छोटे कारणों को बहुत बड़ा रूप देकर कुछ का कुछ समझने की भूल करते हैं। सामने वाले में केवल दोष ही ढूंढने लग जाते हैं। तो फिर वही तो मिलेगा जो हमने ढूंढा है। दोष विहीन कोई वस्तु नहीं यदि हम दोष ढूढ़ने की आदत से ग्रसित हो रहे हैं और किसी के प्रति दुर्भावना  पूर्ण व्यवहार बनाए हुए हैं तो उसके जितने दोष हैं वे सब बहुत बड़े-बड़े रूप में हमें दिखाई देंगे और वह व्यक्ति दोषों के पर्वत जैसा लगेगा यदि हम अपना दृष्टिकोण उस व्यक्ति के प्रति आत्मीयता पूर्ण रखें तो, उसकीं सज्जनता पर विश्वास करें तो उसमें हमें गुण दिखाई देंगे और उसे हम सज्जन और सत्पुरुष कह सकते हैं। भूल हर किसी से होती है। दुर्गुणों और दुर्बलताओं  से रहित तो कोई नहीं, पर जिसे हम प्यार करते हैं उसकी भूल पर तो हम ध्यान ही नहीं देते और उन्हें बहुत छोटी मानते हैं यदि कोई बड़ी भूल भी होती है तो उसे हंसकर टाल देते हैं और उदारता पूर्वक क्षमा कर देते हैं।

   वस्तुतः यह अपनी भावनाओं का ही खेल है कि दूसरे की बुराई या भलाई बहुत छोटी हो जाती है या बहुत बड़ी दिखती है। 

   अतः सब खेल हमारे दृष्टिष्टिकोण का है।  किसी भी व्यक्ति की भलाई- बुराई इतना महत्व नहीं रखती जितना हमारा दृष्टिकोण। दृष्टि दोष हर वस्तु को उसी प्रकार परिवर्तित कर देता है जैसे रंगीन कांच का चश्मा पहनने पर हर वस्तु का रूप भिन्न प्रतीत होता है। 

   निंदा रस में समय व्यतीत करने वाले व्यक्ति दूसरों के प्रति घृणा व द्वेष से युक्त होकर ही ऐसा करते है। आंखों के अंधे को स्वच्छ दर्पण में भी कुछ नहीं दिखलायी देता। वस्तुतः हम जैसा सोचते हैं वैसा ही कर्म करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है और शनै-शनै वहीं हमारी पहचान बन जाती है अतः सकारात्मक सोचें, सकारात्मक करें और सकारात्मक बनें। 

   इसका एक कारण यह भी है कि आप जैसा सोचते है  ब्रह्मांड में से वैसी ही शक्तियों को अपनी और आकर्षित करते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे आप जहाँ पर भी जाते हैं अपने स्वभाव का मित्र ढूढ़ लेते हैं। तो संकल्प करिए सकारात्मक बनने का। क्योंकि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई अवश्य   ह हम मधुमक्खी के समान केवल उस मधु को ही ग्रहण कर लें तो हमारा जीवन प्रसन्नता और सन्तोष के मधु कण से परिपूर्ण होगा और संसार बसन्त से युक्त नजर आएगा। आइए हम अपनी मनोभूमि को सहनशील, उदार, धैर्यवान और सकारात्मक बनाएं।

 

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