राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद द्वारा किए गए हिंदी भाषा के लिए प्रयत्न

 राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद द्वारा किए गए हिंदी भाषा के लिए प्रयत्न 

                               डॉ. साधना गुप्ता

 

जब भारत मे अंग्रेजी राज्य का  प्रारंभ हुआ तो उस समय सामान्यतः अदालत की भाषा पहले से चलती आ रही भाषा फारसी ही  रही पर कुछ प्रान्तों में प्रांतीय भाषाएं  अवश्य अदालती कामकाज में प्रयुक्त होने लगी थी। हिंदी को स्कूलों में पढ़ाया जा रहा था परन्तु कुछ प्रभावशाली नेताओं जैसे सर सैयद  अहमद  खां  ने स्कूलों में हिंदी पढ़ाने का  विरोध किया। ऐसे समय में राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द  हिंदी के पक्षपाती बन कर उभरे।


स्कूलों में हिंदी की वकालत कर शिक्षा में स्थान दिलाया - शिव प्रसाद  हिंदी के पक्षपाती होने के संग  अग्रेजों के कृपापात्र भी थे। हिंदी की रक्षा के लिए इन्होंने महान कार्य किया। वे लगातार सर सैयद अहमद खां का विरोध करते रहे। इसी समय फ्रांसीसी विद्वान गार्सा-द-तासी ने फ्रांस में बैठ कर वहां से ही इस झगड़े को हवा दी। इस झगड़े के परिणाम स्वरूप जो निर्णय हुआ उसके लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है- 'आदालती भाषा उर्दू होते हुए भी शिक्षा विधान में  देश की असली भाषा  हिंदी को स्थान देना पड़ा।'


   हिंदी -उर्दू के इस संधर्ष के समय राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद और राजा लक्ष्मणसिंह हिंदी के पक्षपाती बनकर सामने आए। 


बनारस अखबार का प्रकाशन -  शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर होने के पूर्व राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने काशी से एक पत्र निकालना प्रारंभ किया था जिसका नाम 'बनारस अखबार' रखा था। इस पत्र की भाषा में उर्दू का पुट था। शिक्षा विभाग में मुसलमानों का दल अधिक शक्तिशाली था अतः उन्होंने मध्यवर्ती मार्ग का अनुसरण करते हुए चलती हुई भाषा का समर्थन किया जिसमें उर्दू के चलते हुए शब्दों का प्रयोग होता थाक, ख, ग, ज, फ, पर नुक्ता का प्रारम्भ इन्होंने ही किया था। वास्तव में इनकी भाषा का स्वरूप हिंदी-उर्दू की समस्या को हल करने वाला था। 

 

साहित्य सृजन - राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने साहित्य सृजन भी किया जिसका भाषा की दृष्टि से विशेष महत्व है। इनकी लिखी पुस्तकें हैं, - आलसियों का कीड़ा, राजा भोज का सपना, इतिहास तिमिरनाशक, मानव धर्मसार, उपनिषद् सार, भूगोल हस्तामलक इत्यादि।


   इन्होंने बड़ी चतुराई से  हिंदी की रक्षा की, अन्यथा मुसलमान नेता हिंदी को स्कूली शिक्षा से बाहर कर देने के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाए हुए थे। राजा साहब ने अपनी प्रारंभिक पुस्तकों राजा भोज का सपना आदि में सरल हिंदी का प्रयोग किया है उसमें वह उर्दूपन नहीं है जो बाद की पुस्तकों इतिहास तिमिर नाशक में दिखाई पड़ता है। यही नहीं अपितु उनकी पुस्तक मानव धर्म सार में तो उन्होंने  संस्कृत निष्ठ हिंदी का प्रयोग किया है। संभवतः शिक्षा विभाग में नौकरी करने के बाद अंग्रेज अधिकारियों का रुख देखकर उन्होंने अपनी भाषा नीति बदली और अपनी बाद की  रचनाओं में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग करने लगे। इतिहास तिमिर नाशक भाग दो की भूमिका में वे साफ लिखते हैं - मैंने इस पुस्तक में भाषा का वही स्वरूप रखा है जो बेताल पच्चीसी का है। बेताल पच्चीसी की भाषा उर्दू है।

     वास्तव में राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द की भाषा का स्वरूप हिंदी - उर्दू की समस्या को हल करने वाला था। उन्होंने सामंजस्य बनाने का हर सम्भव प्रयास किया।

     साहित्य की पाठ्य पुस्तक "गुटका" जिसकी रचना संवत् 1924 में की थी, में भाषा आदर्श हिंदी ही रखी थी। इसमें राजा भोज का सपना, केतकी की कहानी, शकुंतला का बहुत सा अंश छापा था।

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